“बचपन के दिन”
अब नहीं जाना होता है उन गलियों में जहां कभी बचपन बीता था,
दोस्तों के साथ दिन भर खेला करते थे न जाने कितने कंचों को जीता था,
रामलीला भी किया करते थे कोई बनता था राम कोई बनता सीता था,
जमकर गुड़ खाया करते थे जब सब्जी में मिर्च का स्वाद लगता तीता था।
घर पर शिकायत पहुंचाई थी माली ने जब हमने बाग से चुराया पपीता था,
माली मुझको नहीं पकड़ पाया क्योंकि तब मैं भागने में बिल्कुल चीता था,
चोरी करना अच्छी बात नहीं होती है यह कर कहकर पापा ने खूब पीटा था,
कच्ची मिट्टी की सड़कों पर लकड़ी की गाड़ी पर दोस्तों को खूब घसीटा था,
बरसात के दिनों में बनाकर कागज की नाव उस पर बिठाया चींटा था।