किसानों के आगे झुकी मोदी सरकार, तीनों कृषि कानून वापस लेने का ऐलान

बॉर्डर जाम, वोट से चोट, गांवों में नो एंट्री, नेताओं की घेरेबंदी... किसान आंदोलन की रणनीति ऐसे रही सफल !

कृषि कानूनों का विरोध कर रहे किसानों को शुक्रवार को बड़ी कामयाबी मिली. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कृषि कानूनों को वापस लेने का ऐलान कर दिया. ये वही कृषि कानून थे, जिन्हें लेकर सरकार का दावा था कि ये कृषि क्षेत्र में सुधार के लिए लाए गए हैं. वहीं, कई किसान संगठन इन्हें काले कानून बताकर पिछले 1 साल से आंदोलन कर रहे हैं. सरकार के इस ऐलान को किसान संगठनों ने अपनी जीत करार दिया है. लेकिन मोदी सरकार को बैकफुट पर लाना किसान संगठनों के लिए इतना आसान नहीं था. इसके लिए किसानों ने पहले बॉर्डर पर डेरा डाला. फिर इस रणनीति को सड़कों तक पहुंचाया. नेताओं का घेराव किया गया. इसके अलावा किसान नेताओं ने भाजपा को वोट से चोट देने की भी कोशिश की. 

दिल्ली की सीमाओं पर डाला डेरा

सितंबर में केंद्र सरकार तीन कृषि कानून व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) विधेयक 2020 , मूल्य आश्वासन एवं कृषि सेवाओं पर कृषक सशक्तिकरण एवं संरक्षण अनुबंध विधेयक 2020  और आवश्यक वस्तु संशोधन बिल- 1955 लाई थी. हालांकि, इन कृषि कानूनों के विरोध में नवंबर 2020 से किसान संगठन सड़कों पर उतर आए. किसानों ने दिल्ली के सिंघु, टिकरी और गाजीपुर बॉर्डर पर डेरा डाला. किसान अपने साथ राशन पानी भी लेकर आए. किसानों ने ऐलान किया कि जब तक सरकार कानून वापस नहीं लेगी, वे बॉर्डर पर डटे रहेंगे. किसानों ने दावा किया कि उनके पास सालों तक आंदोलन करने के लिए राशन पानी की व्यवस्था है. 

सोशल मीडिया पर खोला मोर्चा

दिल्ली के घेराव से शुरू हुए इस आंदोलन में सोशल मीडिया ने भी अहम भूमिका निभाई. किसान संगठन के नेता ट्विटर, फेसबुक समेत अन्य सोशल मीडिया माध्यमों पर काफी सक्रिय रहे. किसान नेता राकेश टिकैत आंदोलन से लोगों को जोड़ने के लिए ट्विटर पर काफी सक्रिय नजर आए. इसके अलावा संगठन के सोशल मीडिया पेज पर भी आंदोलन के बारे में लगातार जानकारी दी गई. महापंचायतों का लाइव टेलीकास्ट किया गया.nbsp;

जब 26 जनवरी को बैकफुट पर आया किसान आंदोलन

किसानों ने 26 जनवरी के दिन ट्रैक्टर परेड निकाली थी. इस दौरान हिंसा हुई. लाल किले पर भी जमकर उपद्रव हुआ. हिंसा के बाद आंदोलन लगभग खत्म होने की कगार पर था. लेकिन 29 जनवरी को राकेश टिकैत के 'आंसू' रंग लाए और आंदोलन को फिर खड़ा कर दिया. टिकैत के आंसुओं ने न सिर्फ आंदोलन को खत्म होने से बचाया, बल्कि उन्हें भी किसान आंदोलन का बड़ा चेहरा बना दिया.

भाजपा नेताओं की गांव में नो एंट्री

हरियाणा, पंजाब और उत्तर प्रदेश में किसान आंदोलन का सबसे ज्यादा असर दिखा. इनमें से पंजाब और उत्तर प्रदेश में अगले साल विधानसभा चुनाव हैं. पंजाब के कई गांवों में भाजपा नेताओं की एंट्री पर रोक लगा दी गई. यहां तक की पंजाब में मुक्तसर जिले के मलोट में कृषि कानूनों के समर्थन में प्रेस कॉन्फ्रेंस करने पहुंचे भाजपा विधायक अरुण नारंग को दौड़ा-दौड़ा कर पीटा गया. उनके कपड़े फाड़े गए. हरियाणा और पंजाब के तमाम गांवों में भाजपा-जेजेपी नेताओं की एंट्री पर बैन लगा दिया गया. यूपी के अमरोहा में भी कई गांव में भाजपा के नेताओं की एंट्री पर बैन संबंधी बोर्ड लगाए गए. 

हरियाणा में किसानों ने नेताओं की घेराबंदी की. हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर और डिप्टी सीएम दुष्यंत चौटाला के कार्यक्रमों के दौरान भी किसानों ने जमकर हंगामा किया. करनाल में तो खट्टर के कार्यक्रम में पुलिस को लाठीचार्ज करना पड़ा. हरियाणा के रोहतक के किलोई गांव में एक मंदिर में पूर्व मंत्री समेत तमाम भाजपा नेताओं को किसानों ने बंधक बना लिया था. कई घंटों बाद पुलिस ने भाजपा नेताओं को छुड़वाया था.nbsp;

वोट से चोट का ऐलान

राकेश टिकैत ने चुनाव में वोट से चोट देने का ऐलान किया था. हालांकि, उन्होंने साफ कर दिया था कि वे किसी नेता के साथ मंच साझा नहीं करेंगे. टिकैत प बंगाल में भाजपा के खिलाफ प्रचार करने पहुंचे थे. टिकैत ने यूपी, एमपी, राजस्थान और हरियाणा में कई जगह महापंचायत की. हरियाणा में एक विधानसभा सीट पर हुए उपचुनाव में भाजपा को हार का भी सामना करना पड़ा. 


Nishika Jain

3 Blog posts

Comments